मोहल्ले में हमारी इज्ज़त का आलम ये है कि हम जैसे ही घर से बाहर निकलते हैं तो मौहल्ले की सब बहू बेटियां हमारा रास्ता खाली कर देती हैं । ये तुम्हारा वहम है कि वे आदर से ऐसा करती हैं । हमें तो बच्चा बच्चा जानता है । हमारे कारनामे सुनकर कौन महिला है जो सामने खड़ी रहने कघ हिम्मत करेगी ? पर ये समझ नहीं आता है कि वे भाग क्यों जाती हैं ? हमारे सिर पर कोई सींग थोड़ी ना उगे हैं जो कोई हमसे डरकर भागती फिरे ? हां थोड़ी बहुत मसखरी जरूर कर लेते हैं हम । अब इस दुनिया में जिंदा रहने के लिए बचा ही क्या है ? जिधर देखो उधर आदमी गमों के सागर में डूबा पड़ा है । तो इसलिए मसखरी करके थोड़ी सी ताजी हवा के झोंके ले लेते हैं और जिंदा रह लेते हैं ।
लोग बहुत परेशान हैं । किसी को दो रोटी मयस्सर नहीं है तो किसी को रोजगार नहीं मिल रहा है । कोई मंहगाई से बेहाल है तो कोई भ्रष्टाचार और नौकरशाही से दुखी है । न्यायालयों से तो केवल तारीख ही मिलती है, न्याय तो मिलते देखा नहीं है । सफेद पोश लोग "मुफ्त" का लालच देकर गद्दी हथिया लेते हैं और उसी जनता का शोषण करते हैं जिसकी भलाई की कसमें रात दिन खाते हैं । जिन्हें कोई दुख नहीं है वे इसी बात से दुखी हैं कि कुछ लोगों के पास इतना धन क्यों है (अंबानी, अड़ानी) । लोग उन्हें ही कैसते रहते हैं । ज्यादातर पति इस बात से दुखी है कि उन्हें वैसी बीवी नहीं मिली जैसी वे चाहते थे , मतलब "संस्कारी" यानी विचारों से सांस्कृतिक और पहनावे से आधुनिक । है ना दुर्लभ योग ।
पर एक बात तो बताओ ? तुम हमारे पीछे ही क्यों पड़ी हुई हो ? गलती से हमने एक बार दारू के नशे में बक दिया था कि हम कोई लेखक वेखक नहीं हैं । हमारे खानदान में दूर दूर तक कोई लेखक पैदा नहीं हुआ । मगर हम भी क्या करते ? लॉकडाउन में खाली जो बैठे थे । खाली आदमी देखकर बीवी भी कोई काम पकड़ा जाती है । कहती है "सुनो ना ! अगर खाली ही बैठे हो तो ऐसा करो , ये झाड़ू पोंछा कर दो ना " ! हमारी यही तो कमजोरी है कि हम किसी महिला को ना नहीं कह पाते हैं । और कम से कम बीवी को तो बिल्कुल नहीं । इसलिए उस दिन से वे हमसे झाड़ू पोंछा करवाने लगीं । इस "बला" से बचने के लिए हम "प्रतिलिपि" पर आ गए और ऊलजुलूल लिखने लगे । लोग हमें "साहित्यकार" समझने लग गये । अब इसमें हमारी क्या गलती है ? हमने कोई लोगों से कहा था क्या कि हमें श्रेष्ठ लेखक समझो ? नहीं ना ? तो समझते रहें हमें लेखक , अपना क्या ? हम तो बने बनाये " अनपढ़ कालिदास" ठहरे । जिसे कुछ आता जाता नहीं मगर रौब दुनिया भर का गांठता है ।
मगर तुमने तो हमारी बखिया ही उधेड़नी शुरु कर दी । कभी "श्रंगार रस" पर लिखवाती हो तो कभी "हास्य रस" पर । और आज तो "वीर रस" का नंबर ले लिया ? लगता है कि एक एक करके तुम पूरे "नव रसों" का आस्वादन करना चाहती हो । हमने ले देकर श्रंगार रस पर तो कुछ लिख दिया । श्रंगार रस में क्या है , कुछ भी लिख दो । बस, एक लड़का और एक लड़की होने चाहिए । वे अगर चुपचाप भी खड़े हैं तो भी "श्रंगार रस" तो बरस ही जायेगा ना । सुधी लोग कहेंगे "वाह , क्या शानदार रचना है । दोनों प्रेमी युगल खामोश हैं मगर उनके नैन बात कर रहे हैं । लरजते होंठ बहुत कुछ बोल रहे हैं । थरथराते जिस्म की भाषा बखूबी पढने में आ रही है । और अगर ऐसे में लड़की का जूड़ा (आजकल तो परकटी ज्यादा हैं) खुल जाये , जो उसने ढंग से नहीं बांधा था, तो पाठक गण उन काले घुंघराले बालों की महकती छाया में ही सो जायेंगे । लड़के का नंबर तो बाद में आयेगा । इसलिए श्रंगार रस बिखराने में कुछ भी कलाकारी नहीं है ।
अब तुम कहोगे "हास्य रस" के बारे में क्या विचार है ? तो मैं तुम्हें पहले ही बता देना चाहता हूं प्रतिलिपि जी, कि हास्य परोसना भी कोई बड़ा काम नहीं है । हास्य रस में क्या है ? कुछ भी बक दो और "सिद्धू" की तरह या "अर्चना पूरण सिंह" की तरह जोर जोर से हंसो , ठहाके लगाओ । तो सबको लगता है कि कोई हंसने वाली बात कही गई है और इस पर सभी लोग हंसने लग जाते है । और आजकल तो हंसने के जितने भी प्रोग्राम आ रहे हैं, सबका एक ही फंडा है कि किसी का मजाक बनाओ , उसकी जी भरकर खिल्ली उड़ाओ और खूब हंसो और हंसाओ । दुनिया को उल्लू बनाओ और मोटा माल और शोहरत कमाओ । न जाने कितने "स्टैंड अप कॉमेडियन" यही कर कर के अरबपति और सेलिब्रिटी बन गए । और तो और इन "बेइमान कॉमेडियंस" ने भगवानों को भी नहीं बख्शा । जी भरकर खिल्ली उड़ाई है उनकी । तो बड़ा आसान काम है हास्य रस बिखराना ।
मगर वीर रस पैदा करने के लिए कलेजा चाहिए महाराणा प्रताप जैसा । बुद्धि चाहिए "शिवाजी" जैसी । देशभक्ति चाहिए "भगतसिंह और सुभाषचन्द्र बोस" जैसी । वीरता चाहिए रानी लक्ष्मीबाई जैसी । कलम चाहिए सुभद्रा कुमारी चौहान और चंद्रबरदाई जैसी । जज्बा चाहिए सैनिकों जैसा जो माइनस तापमान में भी गलवान घाटी में चीन के दांत खट्टे कर देते हैं ।
मगर ये सब गुण आज के जमाने में कोई कहाँ से लाये ? आदमी को तो बच्चों की मोटी फीस जमा कराने के लिए दिन रात मेहनत करनी पड़ती है ना । उस पर मंहगाई डायन रोज सुरसा की तरह विकराल होती जा रही है । सरकारी काम करवाने में नानी याद आ जाती है । कानून व्यवस्था का आलम यह है कि लोग राह चलते "चैन" छीन कर भाग जाते हैं । सरेआम बलात्कार कर जाते हैं । हत्या तो कभी भी हो सकती है किसी की भी । ना तो पुलिस का इकबाल है और ना ही न्यायालयों का दबदबा । अब तो अपराधियों के ही हाथों में लाज है । वे चाहें तो छोड़ दें और ना चाहें तो मार दें । इसलिए लोग अब अपराधियों की ही शरण में जा रहे हैं । पश्चिमी बंगाल जैसे राज्य में रहना कोई कम वीरता है क्या ? जिस राज्य में "हफ्ता वसूली" में पूरी सरकार लगी हो और "वसूली" ही उस सरकार का एकमात्र ध्येय हो , उस राज्य में जिंदा रहना भी कम वीरता नहीं है ।
महिलाओं पर आये दिन आक्रमण हो रहे हों । दुष्कर्मों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही हो । जिस राज्य में 32000 महिलाएं गायब हो गई हों और उन्हें आई एस आई एस के आतंकवादियों की हवस बुझाने के लिए विदेशों में भेज दिया हो , ऐसे राज्य में रहना भी बहुत बड़ी वीरता है । एक ऐसे राज्य में जिसमें महिलाओं पर अपराध सबसे ज्यादा हों, सत्तारुढ़ दल का पार्षद किसी "शोभायात्रा" पर पथराव करवाता हो तो उस राज्य में रहकर जिंदा बच जाना भी कम वीरता नहीं है ।
तो हे प्रतिलिपि देवी जी । हमसे ये नव रसों पर लिखा नहीं जाता है क्योंकि हमने कौन सी हिन्दी में स्नातकोत्तर डिग्री ले रखी है । अरे , हम तो वो हैं जिन्हें लोग कहते हैं कि "बाप ने मारी मेंढकी और बेटा तीरंदाज" । तो हमारा निवेदन सुनें और हमें "साहित्यिक मनीषी" ना समझें । हां , अगर लिखवाना ही है तो "निन्दा रस" पर लिखवा लो । उस पर तो हम कई पुराण भी लिख सकते हैं । तो मेहरबानी करके भविष्य में हमारा थोड़ा सा ध्यान रख लेना, देवी ।
हरि शंकर गोयल "हरि"
6.4.2022
Anam ansari
06-Apr-2022 08:15 PM
👏👏👏
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Seema Priyadarshini sahay
06-Apr-2022 03:56 PM
बहुत बढ़िया
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Hari Shanker Goyal "Hari"
06-Apr-2022 07:12 PM
💐💐👌👌🙏🙏
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Punam verma
06-Apr-2022 11:00 AM
Very nice
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Hari Shanker Goyal "Hari"
06-Apr-2022 07:12 PM
💐💐👌👌🙏🙏
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